Friday 1 July 2011

काफ़िर ही सही

बैठा था चिंतन में डूबा 
नदिया के तट पे अकेला
हाँ... अकेला ही शायद!
तभी अचानक नजरें उठीं ऊपर 
उस अनादि अनंत आसमान में
देख गगन में होती अविरत 
एक अनोखी नीलधवल हलचल 
लगा 
मानो बूढ़े खुदा के बाल लहरा रहें हों...
काफ़िर ही सही 
पर ख़याल इतना भी बुरा नहीं 

2 comments:

  1. भले सबको लागे ये खयाल..
    जानने वाले जानते है क्या है मेरा हाल..

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  2. ख्वाब ही सही चला हूँ जंग पे,
    खवाब ही सही चला हूँ राह चुनने,
    ख्वाब ही सही चला हूँ परी को ढूँडने,
    ख्वाब ही सही चला हूँ आसमान को समेटने,

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बस यूँही