बैठा था चिंतन में डूबा
नदिया के तट पे अकेला
हाँ... अकेला ही शायद!
तभी अचानक नजरें उठीं ऊपर
उस अनादि अनंत आसमान में
देख गगन में होती अविरत
एक अनोखी नीलधवल हलचल
लगा
मानो बूढ़े खुदा के बाल लहरा रहें हों...
काफ़िर ही सही
पर ख़याल इतना भी बुरा नहीं
भले सबको लागे ये खयाल..
ReplyDeleteजानने वाले जानते है क्या है मेरा हाल..
ख्वाब ही सही चला हूँ जंग पे,
ReplyDeleteखवाब ही सही चला हूँ राह चुनने,
ख्वाब ही सही चला हूँ परी को ढूँडने,
ख्वाब ही सही चला हूँ आसमान को समेटने,