Tuesday 23 July 2013

पलकों के तले

ख़्वाबों को हक़ीक़त का जामा हर बार नहीं पहनाया जाता
कुछ ख़्वाब सिर्फ पलकों के तले महफूज़ रहते हैं
पलकें खुली नहीं की पिघल गए हमेशा के लिए
एक ऐसा ही ख़्वाब मैंने सम्भाले रखा है पलकों के तले
एक ऐसा ख़्वाब
जिसमे चैनोसुकून है, खुशियाँ हैं
जो कुछ भी है उस पर हक़ सिर्फ़ मेरा है
दुनिया के रीतिरिवाजों से परे एक अलग ही बसेरा है



दुनियावालों,
सोने दो मुझे
बंद रहने दो इन पलकों को
ऐ रात, तू न ढल
ऐ सूरज, मत निकल
समय, तू थम जा जरा
मुझे इस नींद से न जगा



सुबह होते ही उठना पड़ेगा
और पलकों के खुलते ही ये ख़्वाब
झुलस जाएगा सच्चाई की लपटों में
एक ऐसा ख़्वाब
जिसमे चैनोसुकून है, खुशियाँ हैं
जो कुछ भी है उस पर हक़ सिर्फ़ मेरा है
सिर्फ़ मेरा!

2 comments:

बस यूँही