शब्दोंसे परे भावोंसे भरे
Friday, 12 August 2011
बन गगन !
कितने घन आतें गगन में
रहतें हैं ख़ुद में मगन
और चलें जातें गगन से
फिर अकेला है गगन
.....
ऐ मेरे मन,
बन न घन
बनना है तो बन गगन !
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बस यूँही
मजबूर ये हालात
बस यूँही
सब कुछ यहाँ श्रीकृष्ण हैं
सब कुछ यहाँ श्रीकृष्ण हैं आरम्भ भी और मध्य भी निश्चित बना वो अंत भी! अनादि वो अनंत भी अपार वो अखंड भी असीम अमित कृष्ण हैं ! ...