Monday 28 December 2015

ख़ुद से वफ़ादारी...

कभी ख़ुद से भी बना कर देख लो ज़रा सी दूरियाँ
हमेशा ख़ुद की ख़ुद से वफ़ादारी ज़रूरी नहीं होती !

Friday 25 December 2015

मेरी नाजुक नज़्में

चाँद को तराश कर बड़ी मेहनत से
एक क़लम बनाई है मैंने
और जला कर तारों को
बनाई है ये सियाही
सोचता हूँ के कुछ नज़्में लिख के जाऊँ
रात के कागज़ पे आज!
तुम बस इतना करना कि अपनी आँखों की अलमारी जल्दी से खोल कर 
उठा कर इन सारी नज़्मों को
बंद कर लेना उस अलमारी में
महफूज़ रहेंगी!
यक़ीनन कोई तो है रक़ीब मेरा
जो हरगिज़ नहीं चाहता की ये नज़्में तुम तक पहुँचे!
वरना कोई सूरज की आग जलाने की जद्दोजहद में क्यों जुटता भला?
जल्दी करो...
ये कागज़ अब जल जाएगा...
ये नज़्में झुलस झुलस कर मिट जाएंगी...
बड़ी नाजुक हैं
ये चाँद के क़लम और तारों की सियाही से रात के कागज़ पे लिखी मेरी नज़्में!

Wednesday 23 December 2015

साँस

मेरे हक़ की, मेरे हिस्से की साँस
अपनी राह बनाते बनाते
ग़ैरों से चेहरा छुपाते छुपाते
मेरी तरफ़ आती है...
मेरी बन जाती है...
कितना दर्द उठाती है !
साँस निकलती होगी बेचारी की !

बस यूँही