शब्दोंसे परे भावोंसे भरे
Sunday 2 June 2013
वह भीड़ थी अकेलों की !
भीड़ से डरता, बचता, संवरता
चल रहा था
अब तक
अकेला!
ताकि मेरे आंसू कोई देखे ना,
मेरी चीखें कोई सुने ना!
......
आज अचानक खुद को पाया
एक बहते हुए बड़े से झुण्ड का हिस्सा बने
भीड़ के बीचोंबीच !
देखने की, सुनने की, महसूस करने की कोशिश करते
पर ना तो कुछ देख पाया, ना सुन पाया, ना ही महसूस कर पाया कुछ भी|
......
सोचा, तो पता चला
यह तो भीड़ है उन अकेलों की
भीड़ से डरते, बचते, संवरते वो अकेले
जो चाहते हैं
की उनके आंसू कोई देखे ना,
उनकी चीखें कोई सुने ना!
......
वह भीड़ थी उन अकेलों की !
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बस यूँही
जुदाई
आज जुदा हो रहे हैं... उस लम्बी जुदाई से पहले! कहते हैं: अपना एहसास दिलाती है मौत आने से पहले!
जीवन में तेरे मै आया हूँ
शब्दोंसे परे भावोंसे भरे कुछ ऐसे क्षण मैं लाया हूँ जीवन में तेरे मै आया हूँ तू मान इसे संजोग सही या ईश्वर का संकेत कोई तू पूर्ण कहाँ, मै...
मुमकिन नहीं
उसने कहा भूल जाओ भूल जाओ मुझे सदा के लिए मैंने कहा मुमकिन नहीं न तो मैं ख़ुद को भुला सकता हूँ न ही ख़ुदा को
No comments:
Post a Comment