कभी तुम्हें आँखों के बिलकुल सामने मैं पाता हूँ |
और कभी मैं मीलों तुमसे दूर चला आता हूँ |
कभी लगे तू नदिया कोई और समंदर मैं हूँ |
कभी लगे तू नभ मैं बादल, तुझ में समा जाता हूँ |
कभी तुझे मैं बूझ न पाऊँ ऐसी तू है पहेली |
और कभी प्रतिबिम्ब मेरा हो ऐसी तू है सहेली |
कितना भी तू रूठ ले मुझ से दूर नहीं जाना है |
मन से रहेंगे साथ सदा; हाँ, मैंने क़सम है ले ली |
Banhian hai.. Ur thoughts are owesome sapre sahab.. Aur bataein ka haal? Kaisan chal rahal baa kaam?
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